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Friday, July 5, 2013

हर कोई यहाँ जल्दी में है !

पाकर आने की आहट
मौसम-ए- बरसात की,
एक पौधा बरगद का
रास्ते के उस छोर पर,
बाग़ के कोने में अपने
रोपने  जो  मैं चला तो ,
उधर से होकर
गुजरता हर एक राही
बस यही बुदबुदाता ;
"पागल है,
नीलगिरी का रोपता
तो कुछ फायदे में रहता।"

    

3 comments:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

Unknown said...

आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर

सुशील कुमार जोशी said...

वाकई बहुत जल्दी में :)