गली वीरां-वीरां सी क्यों है, उखड़े-उखड़े क्यों खूंटे है,
आसमां को तकते नजर पूछे, ये सितारे क्यों रूठे है।
डरी-डरी सी सूरत बता रही, महीन कांच के टुकडो की,
कहीं कुपित सुरीले कंठ से,कुछ कड़क अल्फाज फूटे है।
आसमां को तकते नजर पूछे, ये सितारे क्यों रूठे है।
डरी-डरी सी सूरत बता रही, महीन कांच के टुकडो की,
कहीं कुपित सुरीले कंठ से,कुछ कड़क अल्फाज फूटे है।
फर्श पर बिखरा चौका-बर्तन, आहते पडा चाक-बेलन,
देखकर उनको कौन कहेगा कि ये बेजुबाँ सब झूठे है।
तनिक हम प्यार में शायद,मनुहार मिलाना भूल गए,
फकत इतने भर से ख़्वाबों के,सुनहरे तिलिस्म टूटे है।
अजीजो को झूठी खबर दे दी,'परचेत' तेरे गुजरने की,
वाल्लाह,बेरुखी-इजहार के उनके, अंदाज ही अनूठे है।
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