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Monday, September 19, 2011

अबूझ !




तुम जब भी देखोगे
मेरा चेहरा,
तुम्हे सिर्फ और सिर्फ
हंसी ही बिखरी नजर आयेगी,
क्योंकि, नयनों से निकले
तमाम मोतियों को,
दिल के समंदर में
सीपियाँ समेट ले जाती है !

ये बात और है कि
खिली धूप में भी
कभी न कभी
जीवनपथ पर,
बारिश की फुहारों के
हम चश्मदीद तो बनते ही है !!