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Monday, May 16, 2011

दास्ताने टेररिस्तान !

नाम पाक, मंसूबे निर्मम नापाक,

लत संत्रास स्वाद की,

सब झूठे,मक्कार, स्तुति करूँ क्या

किसी एक-आद की !        

पिद्दीभर एबटाबाद तो अपना

इनसे सम्भाला न गया,

और कंगले, बात करते फिरते थे

हमारे अहमदाबाद की !!  


बीज जैसा, पौध वैसी, उसपर

खुराक द्वेष-खाद की,  

छीनकर दुनिया का अमन-चैन,

सुख-शांति बर्बाद की !

कांटे खुद बोये,दोष हमें दिया,

अरे कायरों ! हम तुमसा

दाऊद-ओसामा नहीं पालते,

ये भूमि है गांधी, बोष,

राजगुरु, भगतसिंह, आजाद की !!


जिन्दगी की गाडी, सुबह से शाम तक जाम में फंसी है,
मंजिल-ए-सड़क, नाकामियों की दल-दल में धंसी है, !
राह में जिसे मौक़ा मिला, साला  ठोक के चला गया,
अब तो, कभी खुद पे, कभी हालात पे आती हंसी है!!