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Friday, March 11, 2011

ऋतुराज वसंत !













प्रकृति छटा
सुशोभित अनंत है,
आ गया फिर
ऋतुराज वसंत है !

कोंपल कुसुम
सुगंधित वन है,
समीर सृजन
शीतल पवन है !

मंद-सुगंध सृजित
वात-बयार है,
सुर्ख नसों मे हुआ
रक्त संचार है !

हर सहरा ओढे
पीत वसन है,
जीवंत भया
अभ्यारण तन है !

दरख्तों पर
खग-पंछी शोर है,
कोमल सांस
कशिश पुरजोर है!

शिशिर शीत
सब कुछ भूली है,
खेत सुमुल्लसित
सरसों फूली है !

सफ़ल कंपकपाती
सूर्य साधना है,
श्रीपंचम पर
सरस्वती अराधना है !

गूंजी फिजा मे
सुवासमय खास है,
खारों मे भी
लहरा रहा मधुमास है !

सुरम्य वादियों का
यही आदि-अंत है,
आ गया फिर से
ऋतुराज वसंत है !

1 comment:

vijay kumar sappatti said...

bahut sundar rachna ,


badhayi sweekar kare..

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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html