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Friday, January 21, 2011

गुजरे दशक का लेखा-जोखा !

शठ, रंक-राजा दुर्जनों का, काम देखा,काज देखा,
हमने ऐ सदी इक्कीसवीं,ऐसा तेरा आगाज देखा।

बनते हुए महलों को देखा, झूठ की बुनियाद पर,
छल-कपट, आडम्बरों का,इक नया अंदाज देखा॥

भरोसे को दर्पण दिखाया, विकिलीक्स-आसांजे ने,
छलता रहा जो दोस्त बन,हर वो धोखेबाज देखा।

अरसा गुजर गया कहने को, रजवाड़े त्यागे हुए,
जनतंत्र संग पल रहा,फिर भी एक युवराज देखा॥

मुंबई साक्षी बना, मजहबी नफ़रत-ए-जुनून का,
दहशती शोलों मे लिपटा, देश का वो ताज देखा॥

नमक,प्याज-रोटी, जो दीन-दुर्बल का आहार था,
खून के आंसू रुला गया, हमने ऐसा प्याज देखा।

असहाय माँ देखी शिशु को, घास की रोटी खिलाती.
बरसाती गोदामों में सड़ता, सरकारी अनाज देखा॥

फक्र था चमन को जिस,अपने तख़्त-ए-ताज पर,
चौखटे एक दबंग चंड की,दम तोड़ता वो नाज देखा।

उम्मीद है कि राम-राज लाएगा, आगामी तेरा दशक ,
माँ कसम,अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा॥

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