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Friday, September 10, 2010

अन्दर की बात !

सोचा कि बता दूं तुम्हे,
फिर कहोगी, बताया नहीं ,
महीनो से ठीक से खाया नहीं,
सिर्फ पीने पे जोर ज्यादा है !
इसलिए आजकल
ये शरीर कमजोर ज्यादा है!!


अभी भी सोच लो,
वक्त है तुम्हारे पास,
कल को मर गया,
लोग तो भूखमरी से
मौत का लगायेंगे कयास !
मगर क्या तुम खुश रह पाओगी
करके मुझे उदास ? नहीं न !!

जिसके चक्करों में पडी हो,
उसकी दौलत पे मत जाओ,
वो ईमानदार कम, चोर ज्यादा है !
दिन-रात गबन करता है,
चूँकि तुम अपने घर की इकलौती हो,
इसलिए तुम पर नहीं,
तुम्हारे बाप की दौलत पर मरता है !
सोचा कि बता दूं तुम्हे,
फिर कहोगी बताया नहीं,
महीनो से ठीक से खाया नहीं,
सिर्फ पीने पे जोर ज्यादा है !!
इसलिए आजकल
ये शरीर कमजोर ज्यादा है!!

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कितना चाहता था तुम्हे, तुमको न अहसास था,
गुमनाम सी मौत मर गया, वो आशिक ख़ास था।
तड़फ-तड़फ दीवाने ने दम तोड़ा, वफ़ा की राह में,
लोगो ने भुखमरी से मौत का, लगाया कयास था।
देखकर भी न देखा कभी, इक नजर उसकी तरफ,
मगर रहता हर वक्त वो, तुम्हारे ही आस-पास था।
वो चहरे की हंसी उसकी, जिन्दादिली का सबब थी,
इन दिनों नजर आता मगर, कुछ-कुछ उदास था।
यूं मर तो वर्षों पहले गया था, तेरे रूहे-सबाब पर,
समा पे मंडराता परवाना, बस इक ज़िंदा लाश था।
जमाने की नजरों से छुपाता फिरा, अपनी चाह को,
वनवास बाद 'परचेत' , यह उसका अज्ञातवास था॥

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