मेरे दिल की हसरत जब, कोई मुकाम पायेगी,
सच कहता हूँ जिन्दगी, तु मुझे न थाम पायेगी।
बेवफ़ा मुसाफ़िर हूँ, चल दूंगा यूंही संग छोड्कर,
किसी मोड पर खुद को तू ही, तमाम पायेगी॥
सरे महफिल उठ लूंगा जब, मैं तेरे मयखाने से,
हाथ अपने साकी, खाली खाली सा जाम पायेगी।
यूं तो क़दमों को अबतक अपने संभाले रखा हूँ,
लडखडा गए पग जिसदिन, बहुत बदनाम पायेगी॥
नेकियों के बदले मिली, हमें तो ठोकरें ही सदा,
इनायतों के बदले तू भी कहाँ, कोई इनाम पायेगी।
संग चलने की तेरे, कोशिशे तो भरसक है 'परचेत' ,
संशय उस रोज का है, जब कभी नाकाम पायेगी॥