दो ही रोज तो गुजरे
जुम्मे-जुम्मे
मगर अब शायद ही
मगर अब शायद ही
याद हो तुम्हे,
किसी बेतुकी सी बात पर
किसी बेतुकी सी बात पर
भड़ककर
उतर आये थे तुम दल-बल
उतर आये थे तुम दल-बल
सडक पर,
तुमने अपनी नाखुशी जताने को
राह चलते राहगीर को सताने को ,
लिए हाथों में ईंट, पत्थर
तुमने अपनी नाखुशी जताने को
राह चलते राहगीर को सताने को ,
लिए हाथों में ईंट, पत्थर
तुम्हारा जन-जन
कर डाला मिलकर वो
कर डाला मिलकर वो
क्रूर भौंडा सा प्रदर्शन ,
तब चरम पर पहुंचा
तब चरम पर पहुंचा
सबक का वो आह्वाहन
शिकार हुए मंजिल को जाते
शिकार हुए मंजिल को जाते
अनगिनत वाहन,
हासिल होगा क्या?
हासिल होगा क्या?
समझा न सोचना जरूरी
कर डाली अपनी वो
कर डाली अपनी वो
विनाश की हसरत पूरी,
और शायद तुमने जो
और शायद तुमने जो
एक बडा सा पत्थर,
उठाकर उस बेगुनाह सडक के
उठाकर उस बेगुनाह सडक के
सीने पे जडा होगा !
आज अन्धेरे मे, उसी छोर से,
किसी मासूम के कराहने की
आज अन्धेरे मे, उसी छोर से,
किसी मासूम के कराहने की
आवाजें आ रही थी,
शायद ठोकर खाकर,वहीं कहीं
शायद ठोकर खाकर,वहीं कहीं
गिर पडा होगा !!
काश कि तुममे भी थोड़ी
काश कि तुममे भी थोड़ी
संवेदनशीलता होती
और थोड़ा सा
और थोड़ा सा
तुम्हारा भी दिल दुखता !
तनिक तुम भी
तनिक तुम भी
महसूस कर पाते कि
तुम्हारे आक्रोश का
तुम्हारे आक्रोश का
खामियाजा किसने भुगता !!