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Saturday, March 6, 2010

मेरी जां तू उदास क्यों है ?

(छवि गुगूल से साभार )
ये बेरुखी तुम्हारे इतने पास क्यों है,
मुझे बता मेरी जां तू उदास क्यों है ।

पहलू मे रहे सदा हम तेरे हमदर्द बनकर,
फिर गैर की हमदर्दी इतनी खास क्यों है ।

गर आसां न था तुमको साथ मेरा निभाना,
फिर दिल को मेरे तुमसे इतनी आस क्यों है ।

कठिन है तंग-दिल सनम के दिल मे जगह पाना,
तुम मेरी हो तब भी मुझे ऐसा अह्सास क्यों है ।

बनने चले थे हम तो मधुर इक-दूजे के हमसफ़र ,
आ गई यहाँ फिर ये रिश्तों में खटास क्यों है ।

हमारी तो हर धडकन ही तुम्हारे चेहरे का नूर था,
नजरों की अडचन बना फिर ये तेरा लिबास क्यों है।

जानते हो तुम भी कि जिन्दगी बस इक जुआ है,
बीच राजा-रानी के मगर इक्के का तास क्यों है ।

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