दर्द जुबाँ पे लाने से फायदा क्या,
अश्रुओ को पलकों में छुपाने से फायदा क्या !
अब-जब धडकने बंद हो ही गई तो,
खंजर को जिगर पर चुभाने से फायदा क्या !!
ताउम्र कोशिश बहुत की संवारने की,
पर फिर भी दिल की दुनिया सजाये न सजी !
दूर कर न पाए जो गम के अँधेरे,
अब भला ऐसे चराग जलाने से फायदा क्या !!
कान भी थक जाएँ जब सुन-सुनकर,
खाली तसल्ली, झूठी कसमें और कोरे वादों को !
सुर भटक जाएँ गजल की रियाज में,
फिर नज्म बन्दे को सुनाने से फायदा क्या !!
सिकवा किसी से कोई क्या करे,
वक्त आने पर साया भी साथ छोड़ जाता है !
ज़िन्दगी में कभी साथ तो दे न सके,
अब भला ये दूरियां मिटाने से फायदा क्या !!
तलाशा तो बहुत था मगर,
रिश्ते जाकर दूरियों में कहीं ओझल हो गए !
जिन्दगी ने हमेशा छलावे दिए,
तो नफरत दिल में बसाने से फायदा क्या !!
Friday, February 26, 2010
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1 comment:
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
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