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Wednesday, January 20, 2010

नामुराद वो हसीं पल !

जिस्म तो पूरा ही निर्दोष था पर,
अनाडी इन ओंठो का है दोष सारा !
उनकी गली से हम कई बार गुजरे,
पत्थर किसी ने इसी बार मारा !!

ठिठुरती ठण्ड में, कमबख्त ये ओंठ ,
सीटी बजाने की जिद पर अड़े थे !
नहीं था हमें ज़रा भी अहसास कि वो,
भाई के संग बरामदे में खड़े थे !!

घर भेजा उन्होंने हमें उस रोज,
अपनी उस गली से जख्मी बना के !

हाथ अब खुद उठकर सहसा ही ,
पहुच जाते है ढकने को सिर के टाँके !!

जब कभी भी याद आता है बैठे-बैठे
हमको, नामुराद वो हसीं नजारा !
उनकी गली से हम कई बार गुजरे,
पत्थर किसी ने इसी बार मारा !!

8 comments:

राकेश कौशिक said...

जिस्म तो पूरा ही निर्दोष था पर,
अनाडी इन ओंठो का है दोष सारा!
गोदियाल जी बसंत पंचमी और क्या शायराना अंदाज - बधाई

Arvind Mishra said...

हे राम यह ठंडक और पत्थर की मार ..अल्ला अल्ला

अरूण साथी said...

धन्यवाद
मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने के लिए, विशेष रूप से कायर कहे जाने पर, मैं कहूंगा ''किसी को गुनहगार अब मत कहो, आइने में अपना ही चेहरा शर्मशार होगा।'' और फिर आप जिस वर्ग से उनसे इसी तरह की टिप्पणी की उम्मीद है।

पी.सी.गोदियाल said...

''किसी को गुनहगार अब मत कहो,
आइने में अपना ही चेहरा शर्मशार होगा"
यार अरुण भाई, दो लाइने आपने मेरे ब्लॉग पर दी उसके लिए धन्यवाद , दो लाईने में जोड़ रहा हूँ;
तमाम स्कूल, अस्पताल, रेलवे लाईने उडाकार,
अरे नक्श्लियों तुम्हारा क्या बोलो उद्धार होगा ?

ताऊ रामपुरिया said...

वाह वाह लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.

बसंत पंचमी की घणी रामराम.

रामराम.

ललित शर्मा said...

आज तो बसंत यहीं उतर आया है।
आपका लाजवाब अन्दाज हमे भाया है।


आभार

मनोज कुमार said...

आपको वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये !

वन्दना said...

waah waah.........andaz-e-bayan bhaa gaya , jab patthar sir par aa gaya.......ye bhi khoob rahi.