सत्ता की बागडोर पकड़ ली,
लुच्चे और लफंगों ने !
बेच खाया इस देश को,
भूखे और नंगो ने !!
सोने की चिडिया कभी ,
इसका सर्वनाम था !
अनजान पथिक के लिए ,
यह आश्रय-धाम था !!
चहु दिशा से लपेट लिया
अब बिषधारी भुजंगों ने !
बेच खाया इस देश को,
भूखे और नंगो ने !!
तुष्टिकरण के लिए बिक रहा ,
राष्ट्र -सम्मान है !
कहीं भी अब बचा नहीं,
धर्म-ईमान है!!
लोकतंत्र शर्मशार कर दिया,
मानसिक अपंगों ने !
बेच खाया इस देश को,
भूखे और नंगो ने !!
लुच्चे और लफंगों ने !
बेच खाया इस देश को,
भूखे और नंगो ने !!
सोने की चिडिया कभी ,
इसका सर्वनाम था !
अनजान पथिक के लिए ,
यह आश्रय-धाम था !!
चहु दिशा से लपेट लिया
अब बिषधारी भुजंगों ने !
बेच खाया इस देश को,
भूखे और नंगो ने !!
तुष्टिकरण के लिए बिक रहा ,
राष्ट्र -सम्मान है !
कहीं भी अब बचा नहीं,
धर्म-ईमान है!!
लोकतंत्र शर्मशार कर दिया,
मानसिक अपंगों ने !
बेच खाया इस देश को,
भूखे और नंगो ने !!
7 comments:
"तुष्टि के लिए बेच डाला,
देश का सम्मान !!"
बिल्कुल सही है!
वाह .. सुंदर रचना !!
बहुत ही सही लिखा है आपने... बधाई
कटुता फैला दी,
धर्मान्धता के दंगो ने !
बेच खाया देश को,
भूखे और नंगो ने !!
बहुत सुन्दर
सुन्दर बात ...सचमुच बेच खाया है देश को
देश की बागडोर पकड़ ली,
लूचे और लफंगों ने !
बेच खाया देश को,
भूखे और नंगो ने !!
सभी छंद नगीने की तरह से सजाए हैं, आपने!
कटुता फैला दी,
धर्मान्धता के दंगो ने !
बेच खाया देश को,
भूखे और नंगो ने !!
सत्य कथन्!! प्रत्येक छन्द एक सच उजागर करता हुआ......
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