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Monday, November 9, 2009

शराफत और प्रेम !

१;

लापरवाह बहुत हो,
आज सुबह-सबेरे
जब मै ,
तुम्हारी गली से गुजरी थी,
घर के बाहर गली मे
तुम्हारा कुछ सामान
पडा देखा !


अरे वो ?
हां,हां…..
तुम ठीक ही समझी,
वो मेरी
शराफत का चोला था,
जिसे मैने कल रात,
बस यूं ही ….
खुन्दक मे,
उतार फेंका !!




२;

प्रेम भी
अब नही बचा
आडम्बर के
परिवेश से !
कभी
प्रेम सच्चा होता था,
चाहे वह इन्सान से हो,
या फिर देश से !!

मगर आज हर चीज को
’स्युडोइज्म’ (छद्मता) का
ऐसा बुखार चडा है !
कि दिखावे को ही सही,
मगर इन्सानी धर्म,
राष्ट्र-धर्म से बडा है !!

आज सच्चा प्यार तो
दबा कहीं
तुष्टिकरण की ढेर रहा,
बस छद्म प्यार ही
इस कदर जलवे बिखेर रहा,
हकीकत क्या है
कोई भी उसे
गहनता से नही लेता !
प्रेम के मायने वो बन गये
जो कुछ कम-संख्यक
आज
इस देश से कर रहे,
और
उन कम-संख्यको से
हमारे धर्म-निरपेक्ष नेता !!

8 comments:

Anil Pusadkar said...

सटीक।सब कुछ दिया आपने साफ़-साफ़ बहुत ही कम शब्दों में।

Shashidhar said...

शराफत का चोला था,
जिसे मैने कल रात,
बस यूं ही ….
खुन्दक मे,
उतार फेंका !!

hum sub ki jindigi main ek pal eisa jaroor aata hai.

अजय कुमार said...

बहुत खूब . बढ़िया लगा , हकीकत को बयान करता हुआ

ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ said...

शराफत और प्रेम को सामयकि टच देते हुए व्यक्त किया है, पढकर अच्छा लगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

नीरज गोस्वामी said...

वो मेरी
शराफत का चोला था,
जिसे मैने कल रात,
बस यूं ही ….
खुन्दक मे,
उतार फेंका !!

कमाल की रचना...कितना सच और अच्छा लिखते हैं आप...
नीरज

अम्बरीश अम्बुज said...

प्रेम के मायने वो बन गये
जो कुछ कम-संख्यक
आज
इस देश से कर रहे,
और
उन कम-संख्यको से
हमारे धर्म-निरपेक्ष नेता !!
satik likha aapne..

एम के मिश्र said...

बहुत खूब!

दिगम्बर नासवा said...

वो मेरी
शराफत का चोला था,
जिसे मैने कल रात,
बस यूं ही ….
खुन्दक मे,
उतार फेंका ...

BAHOOT KHOOB ... SAARTHAK RACHNA ... BAS SACH KEVAL SACH BAYAAN KARTI HAI AAPKI RACHNA ...