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Friday, October 30, 2009

कुर्ता-सलवार !



पिछली होली के बाद के एक कवि सम्मलेन की यादे;
कवि महोदय जगह-जगह पर सुई धागे से भद्दे ढंग से तुल्पे, सफ़ेद कुर्ता-पजामा पहने, चेहरे पर काफी खिन्नता लिए, गुस्से में मंच पर आये, और माथे का पसीना फोंझते हुए माइक थाम कर कविता गायन करने लगे;

फाड़ दिया....
फाड़ दिया.....
फाड़ दिया सालों ने ......
"अरे कविवर, आगे भी बढो, आप यही पर क्यों अटक गए", दर्शक दीर्घा से एक आवाज आई तो कविवर आगे बढे ;

याद है, जब तुम
पिछली बार,
मायके से आयी थी,
वह गिफ्ट मेरे लिए लाई थी,
सुन्दर, सफ़ेद चटकीला था.
न ज्यादा टाइट था,
और न ढीला था,
मगर इस होली पर उसे,
जो दिया था तेरे मायके वालो ने !
मिलकर रंग मलने के बहाने,
फाड़ दिया.....
फाड़ दिया सालो ने !!

कितना निखरता था,
मेरे गठीले बदन पर,
तुम्ही तो कहती थी कि,
जब तुम उसे पहन कर,
किसी कवि सम्मलेन में जाते हो,
सच में,
तुम मंच पर,
और कवियों से,
एकदम अलग नजर आते हो,
मगर इस होली पर,
गली-मोहल्ले के गोरे गालो ने!
मिलकर रंग मलने के बहाने,
फाड़ दिया.....
फाड़ दिया सालो ने !!

याद है तुमने,
कितने प्यार से,
वो मुझे दिया था,
तुम्हारी उस भेंट को,
मैंने भी तो,
खुसी-खुसी कबूल किया था,
दिल नहीं लगता,
जबसे तुम फिर से,
मायके गई हो,
ख़त लिखकर बताना
अबके कब लौट रही हो ?
अपने पापा, यानी
मेरे ससुर जी को भी बता देना,
कि इस होली पर,
बस्ती के कंगालों ने !
मिलकर रंग मलने के बहाने,
फाड़ दिया.....
फाड़ दिया सालो ने !!

Thursday, October 29, 2009

हमको हमारी खाक न मिली !

नापाक जिन्दगी को कोई पाक न मिली,
दिल-ए-गम को हमारे कोई धाक न मिली !
दे पाये कहीं पर वास्ता, जिसके प्यार का,
बदकिस्मती कह लो कि वो इत्तेफाक न मिली !!

मुद्दतो से पाला था जहन में इक हसीं ख्याल,
कि लिखवाएंगे इक सुन्दर नज्म कभी तो!
ज्यूँ श्यामपट्ट, दिल टाँगे भी रखा सीने पर,
लिखने को मगर इक अदद चाक न मिली !!

लिखकर भेजे थे जो प्यार के चंद अल्फाज,
जिन्होंने इक कागज़ के टुकड़े पर कभी हमको !
उम्र गुजर गई ख़त की राह तकते-तकते,
मगर कम्वक्त अब तक हमको वो डाक न मिली !!

बड़ी सिद्दत से ढूंढ तो लाये थे एक सुन्दर सा,
हीरे मोतियों से जडा नथनियाहार उनके लिए !
और ख्वाबो में खूब सजाया भी उस मुखड़े पर,
हकीकत में सजा पाते, ऐसी कोई नाक न मिली !!

धूँ-धूँ कर जलता हुआ तो सबने देखा था यहाँ,
तेरा वो सुन्दर सपनो का आशियाना, गोदियाल !
मौका-ए-वारदात पर लाख तलाशा भी मगर,
अब तक वहाँ से तुम्हारी कोई ख़ाक न मिली !!

Sunday, October 25, 2009

एक अफ़सोसमय गीत !


पाले रखी थी ख्वाईशे बहुत, कहने को कोई हमारा भी हो
किसी के हम भी बने,कोई तन्हाई का सहारा भी हो,
अफ़सोस है मगर, कि मै किसी का भी ना बना !
अब कोसता फिरता हू मन्हूस उस घडी को,
जिस घडी मे मेरी मां ने, मुझे था जना !!

वक्त-ए-हालात युं ही मेरा सदा, यहां जाता है गुजर
कहीं आशा की किरण अबतक, आई न हमको नजर,
उम्मीद की राह मे हर तरफ़ छाया है कुहरा घना !
अब कोसता फिरता हू मन्हूस उस घडी को,
जिस घडी मे मेरी मां ने, मुझे था जना !!

हम तो सदा से बस इक, खुश-फहमी मे ही जीते रहे
कोई होगा संग दिल सनम, जामे-तन्हाई पीते रहे,
थक गये आखिर इस बेकरार दिल को मना-मना !
अब कोसता फिरता हू मन्हूस उस घडी को,
जिस घडी मे मेरी मां ने, मुझे था जना !!

गमो ने चौ-तरफ़ा आकर, इस तरह से हमको घेरा है
नाउम्मीदी ही नाउम्मीदी का छा गया अन्धेरा है,
जहरीला अवसाद का खंजर जाने क्यो मुझपे तना !
अब कोसता फिरता हू मन्हूस उस घडी को,
जिस घडी मे मेरी मां ने, मुझे था जना !!

जो थे भी कुछ रिश्ते उनकी बुनियादे, जाने कब रिस गई
बेकरार आखें तो बस इन्तजार, करते-करते ही घिस गई,
दिल मे इक सूनेपन का यह कैसा द्वन्द है ठना !
कितनी मन्हूस सी रही होगी वह घडी ,
जिस घडी मे मेरी मां ने, मुझे था जना !!

Friday, October 23, 2009

ऐसा अद्भुत देश है मेरा !


हमारे देश की इस पावन धरती ने भी,
भांति-भांति के जीव जने !
कुछ ने अपने हाथो ही चमन उजाडा तो,
कुछ गुलिस्तां की नींव बने !

कभी बनी राम-कृष्ण, बुद्ध व गांधी की भूमि,
तो कभी क्रूर मुगलों के तीर सहे !
कहीं पाला कायर-जयचंदों को तो,
कहीं पृथ्वी-भगत सिंह जैसे वीर हुए !

कहीं बहती यहाँ प्यार की गंगा और,
कहीं नफरत के भी बीज बुए !
कहीं खाप हमारी पहचान बनी तो,
कहीं रांझा और हीर हुए !

बलशाली भी बहुत हुए, उतरे वे अखाडे में,
तो दुनिया ने उन्हें कहा खली !

कहीं कायर करता वार छुपकर बाड़े से,
और खुद को कहता नक्सली !

आजाद हुई यह धरती जब गुलामी से तो,
नेता मिला इसे ऐसा कमीना !
जो लूट रहा दोनों हाथो से, जनता को
दिखाता गुड है और खिलाता पीना !

नोट : 'पीना' का अर्थ है, सरसों से तेल निकालने के बाद जो खली बचती है !

Monday, October 19, 2009

इजाफा ही इजाफा !

जब
आज
कलयुग के
इस चरम पर,
अधर्म और असत्य,
अपनी जय-जयकार कर,
खुद ही फूले नही समां रहे,
तो फिर मै तो सिर्फ यही कहूंगा,
कि वो तो हम भी देख रहे है कि;
चोरी और डकैती में इजाफा हो गया ,
कत्ल और बलात्कार में इजाफा हो गया,
घूसखोरी और भ्रष्टाचार में इजाफा हो गया,
धूर्तता और दुष्टता में भी तो इजाफा हो गया,
और जो धर्मगुरु जोर-शोर से दावा करते है कि
उनके धर्मावलम्बियों की आवादी में इजाफा हो गया
,

तो मेरे भाई ! किसमे कितना इजाफा हुआ, इससे हमें क्या ?
हाँ, अगर कही इंसानों की तादात में इजाफा हुआ हो तो
बताना, हम तो बस इतनी सी बात से ही ताल्लुक रखते है !
!


(आभार-श्री श्याम१९५० का जिनकी टिपण्णी पढ़ यह लिखने का दिल हुआ)

Wednesday, October 14, 2009

ऐ यार मत करना !







.
.
.
गफलतों में भी दगा दिल से,
ऐ यार मत करना !
सलवटों में दबके रह जाए,
वह प्यार मत करना !!

मन निश्छल न हो,
छल चेहरे पे नजर आये !
इस तरह के प्यार का ,
तुम इजहार मत करना !!

फूलो को तेरे कदरदान,
खरीदने पर उतर आयें !
गुल-ऐ-गुलशन को यों ,
सरेआम बाजार मत करना !!

घर के द्वारे पे जो खुद ही,
टकटकी लगाए खडा हो !
ऐसे चाँद का हरगिज,
तुम दीदार मत करना !!

पनाहों में किसी की जब,
गुजर रही हो जिन्दगी !
फ़ुर्सत के उन हसीं लमहो में,
जीना दुष्वार मत करना !!

Saturday, October 3, 2009

बिलेटेड हैप्पी बर्थडे बापू !


चौक-चौराहों पे लटका दिया तेरे बुत को,
बनाके कुटिल राजनीतिक विपणन की ढाल !
एक बार आकर तो देख साबरमती के संत,
कि यहाँ तेरे ये भक्त, कर रहे क्या कमाल !!

थोक और फुटकर दोनों में खूब कमा रहे है,
गली-गली में खोल तेरे खादी की दुकान !
पांचो उंगलिया इनकी घी में, सर कडाई में,
करदाता के पैसो का खूब कर रहे फुकान !!

लालू, माया, अमर-मुलायम, राजा -रंक ,
चल पड़े सब रोडपति से करोड़पति की चाल !
एक बार आकर तो देख साबरमती के संत,
कि यहाँ तेरे ये भक्त कर रहे क्या कमाल !!

सादगी के नाम पर पिछले साठ-बासठ सालो में,
इन्होने यहाँ अपने लिए क्या-क्या नहीं है जोड़ा !
तोपे हजम कर ली, शहीदों के कफ़न खा गए,
और तो और पशुओ का चारा भी नहीं छोडा !!

इनकी बदौलत बनकर चले गए यहाँ से रातोरात,
पता नहीं कितने क्वात्रोक्की होकर माला-माल !
एक बार आकर तो देख साबरमती के संत,
कि यहाँ तेरे ये भक्त, कर रहे क्या कमाल !!

Friday, October 2, 2009

और मजनू बेचारा कुंवारा ही रह गया !

कहानी है यह भी एक मजनू की
सुनाता हूं तुमको मै दास्तां जुनूं की,
संग-संग वो दोनो बचपन से खेले थे
साथ ही सजाते अरमानो के मेले थे,
जब से था उन दोनो ने होश संभाला
दिलों मे थी उनकी चाहत की ज्वाला,
परिणय़ मे बंधने की जब बारी आई
अपनो को अपने दिल की बात बताई,
मगर रिश्ता ’बाप’ को यह मंजूर न था !

लाख कोशिश पर भी उसने उसे न पाया
और आखिर मे वही हुआ जो होता आया,
गुजरना पडा मजनू को फिर उस दौर से
हुई, लैला की शादी जबरन किसी और से,
इस तरह मजनू, लैला से सदा को दूर हुआ
पल मे सपनों का घरौंदा चकनाचूर हुआ,
फिर उसके अपने मरहम लगाने को आये
एक नया रिश्ता उसके लिये खुद ढूंढ लाये,
पर रिश्ता उसे ’अपने-आप’ को मंजूर न था !

फिर वक्त का पहिया कुछ और आगे बढा
गांव की इक बाला से प्यार परवान चढा,
हुए तैयार निभाने को दुनियां की रस्मे
खाई उन्होने संग जीने मरने की कसमें,
गांव की गलीयों मे शहनाई बज उठी थी
विवाह को घर-आंगन मे बेदी सज उठी थी,
फिर तभी बदकिस्मती का सैलाब बह गया
और वह मजनू बेचारा कुंवारा ही रह गया,
क्योंकि रिश्ता गांव की ’खाप’ को मंजूर न था !!