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Wednesday, June 17, 2009

सवाल !

उलझने बख्श देंगी गर कभी हमें तो सोचेंगे,
कि हम क्यों कर भला इस जमाने में आये थे !
था वो दर्द ऐसा कौन सा बिनाह पे जिसकी,
मंद-मंद ही सही, हम पलभर को मुस्कुराए थे !!

मुद्दते हो गई अब तो शराब के घूँट पिए हुए,
क्यों अश्को के ही जाम मयखाने छलकाए थे !
काँटों की सेज पर डाले हार अपनी बाहों का,
संग किन ख्वाबो के हम,खुद में ही समाये थे !!

क्यों अंधेरो में ही कटा सफ़र अबतक हमारा,
किसलिए न राह में चिराग,किसी ने जलाए थे !
था वो दर्द ऐसा कौन सा बिनाह पे जिसकी,
मंद-मंद ही सही, हम पलभर को मुस्कुराए थे !!

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