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Friday, April 10, 2009

'बे'घर और 'बे'कार नेता !

'नेता' की नित गिरती गुणवत्ता देखकर
आम आदमी क्यों न भला लाचार हो !
क्या उम्मीद रखे हम उस नेता से
जो साला खुद 'बे'-घर और 'बे'-कार हो !!

जो खुद मन से भूखा, तन से दरिद्र हो
देश का क्या ख़ाक भला काम करेगा ?
गर वह जीत भी गया चुनाव तो, पहले
खुद के 'घर-कार' का ही इंतजाम करेगा !!

गद्दी तलाशती है अपना एक अदद वारिस
जो देश-दुनिया को फिर से नई दिशा दे !
जिसका कोई अपना ईमान-धर्म हो और
हमारी युवाशक्ति को एक राह दिखा दे !!

सोचा न था कभी कि आजादी के मायने
अराजकता हो, लूचे-लफंगों की सरकार हो !
क्या उम्मीद रखे हम उस नेता से
जो साला खुद 'बे'-घर और 'बे'-कार हो !!
-गोदियाल

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