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Monday, April 13, 2009

नया शौक !

पाक-साफ़ रह कर भी हमको क्या मिला
मिला क्या पाले लाजो-शर्म जमाने का,
अब तो तमन्ना लिए फिरते है ऐ-गाफिल
दाग कोई अपने दामन पर लगाने का !

यूँ तो हर इक मंजिल-मुकाम पर अब भी
प्रयास बदस्तूर कायम है हमें सताने का
तोड़ डाल सारे रस्मो रिवाज के बंधन
ये आगाज हुआ फिर किसी अफ़साने का !

कभी दिल में इक ख्वाब था संजोया हमने
भाग्य को अपने संवार कर दिखाने का
पर अब सर्द हवाओं ने रुख बदल लिया
भूल कर जैसे पता कहीं अपने ठिकाने का !

आफताब करने दिल का जर्रा-जर्रा, हमने
रुख कर लिया साक़ी शब-ए-महखाने का
पड़ जाए कुर्ते पे जरा लाल-लाल छींटे
पाला है शौक नया हमने पान चबाने का !

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