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Wednesday, January 14, 2009

अनिष्ट से आशंकित एक कलि !

देश की धड़कन दिल्ली में
हुमायु की कब्र के पास,
इक  छोटे से उपवन में
बैठी थी एक कलि उदास !

कलि  कुछ पल में खिलकर,
फूल बनने के दर पर थी,
उज्जवल भविष्य की चाहते, 
ढेरों उसके मस्तिष्क पर थी !

तभी आ गया वहाँ का माली
उपवन के पौधों को पानी देने,
साथ में लिए अपनी घरवाली,
और लगा उससे यह कहने !

फलां नेता बीमार बड़ा है
बचने की उम्मीद क्षणिक है,
कबसे मृत्यु शय्या पर पड़ा है
उठ जाने की आशा  अधिक है !

फूलो की मांग अधिक होगी
या खुदा ! कल धूप खूब खिले,
धूप से कलिया पोषित होंगी
और बगिया से ढेरो फूल मिले !

सहम गई वह कलि बेचारी
माली की सुनकर यह बात,
रोती थी देख स्व-लाचारी
दुआ करे वो,  हो लम्बी रात !

मागने लगी आशीष खुदा से, प्रभु !
फिजा छादो मुझे न खिलने देना,
भ्रष्ट नेताओ  के जनाजे पर, हे हरी !
फूल  कोई न हरगिज डलने देना !!