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Friday, December 26, 2008

जिसकी लाठी उसकी भैंस !

सबल और निर्बल के मध्य,  
आज दंगल का  खेल सारा है !
बलशाली जश्न में मदहोश,
निर्बल लाचार, थका-हारा है !!

दुबले को नसीब होती  है,
लज्जा, लाचारी, कलंक, खेद !
बाहुबली  की जेब में गए,
सारे  साम, दाम, दंड, भेद !!

चाह किसे नहीं मगर दुर्बल,
वक्त और हालात का मारा है !
सबल और निर्बल के मध्य,  
 आज दंगल का खेल सारा है !!

भूमंडलीकरण के दौर में,
बेचारा स्वदेशी बह चला है!
पूंजीवाद,साम्यवाद के बीच,
बस दिखावे का फासला है !


देशी छोड़ो, विदेशी अपनावो,
यही सभ्य समाज का नारा है !
सबल और निर्बल के मध्य,  
आज दंगल का खेल सारा है !!

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